वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२१ अप्रैल, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,
नानाविचारसुश्रान्तो धीरो विश्रान्तिमागतः।
न कल्पते न जानाति न शृणोति न पश्यति।।२७।।
जो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है, वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है।
प्रसंग:
धीर पुरुष न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है ऐसा क्यों कह रहें अष्टावक्र?
आत्मा क्या है?
मन को केंद्रित कैसे करें?
आत्मा कहाँ है?
जो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है, वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है। अपने स्वरुप से क्या आशय है?